सत्य की बात की जाए और राजा हरिश्चंद्र का नाम न लिया जाए, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीहरि राजा हरिश्चंद्र को ने सत्यवादी की उपाधि दी थी लेकिन क्या आप उस कथा के बारे में जानते हैं जिसके कारण राजा हरिश्चंद्र के नाम के साथ सत्यवादी शब्द जुड़ गया। अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं वह कथा।
महर्षि विश्वामित्र को दान किया सब कुछ
कथा के अनुसार, एक बार महर्षि विश्वामित्र, राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने पहुचे और उन्होंने राजा का सारा राज्य दान के रूप में मांग लिया। इसपर राजा ने अपना राज्य उन्हें खुशी-खुशी महर्षि विश्वामित्र को दान कर दिया। लेकिन इसके बाद महर्षि ने दक्षिणा भी मांगी। तब राजा हरिश्चंद्र ने खुद को और आपने पत्नी व बच्चों को भी बेचने का फैसला किया।
रानी तारामती से भी मांगा कर
राजा हरिश्चंद्र की पत्नी रानी तारामती और उनके पुत्र रोहिताश्व को एक व्यक्ति ने खरीद लिया। वहीं राजा हरिश्चंद्र को श्मशान के एक स्वामी ने खरीद लिया, जहां वह कर वसूली का काम करने लगे। एक दिन रोहिताश्व को एक सांप ने काट लिया जिस कारण उसकी मृत्यु हो गई। जब पत्नी तारा अपने पुत्र को श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए लेकर आई, तो वहां राजा हरिश्चंद्र ने रानी से भी कर मांगा। तब रानी ने अपनी साड़ी को फाड़कर कर चुकाने का सोचा।
आकाश में हुई तेज गर्जना
जैसे ही रानी तारामती ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़ा, तभी आसमान में एक तेज गर्जन हुई और स्वयं भगवान विष्णु प्रकट हुए। भगवान विष्णु ने राजा से कहा कि हे राजन, तुम धन्य हो। ये सब तुम्हारी परीक्षा हो रही थी, जिसमें तुम सफल हुए। तब भगवान विष्णु ने राजा के बेटे को भी जीवनदान दिया और उन्हें सारा राजपाट वापिस लौटा दिया। साथ ही राजा को यह वरदान भी दिया कि जब भी धर्म, दान और सत्य की बात की जाएगी, तो सर्वप्रथम तुम्हारा ही नाम लिया जाएगा।